ऐ हमदम
कोई नगमा न बन जाये!
साज़े दिल, हैं दबे
अरमाँ मेरे
अरमाँ मेरे
जबाँ पर न छा जायें!
है मन के किसी कोने में
कोई तराना
तुम पर उसे न गुनगुनाना!
संगीत की इन वादियों में
शायद कोई
बन न जाये, फसाना!
फिर भी मतवाला मन पंछी
भटके है फलक पर
शायद किसी की तलाश में !
मन क्यों हैं बेचैन
मृगतृष्णा बन
ढूंढें किसी की आस में !
दूर कर दो
मन के वीराने को
हाँ शायद
किसी फसाने से
पर फिर क्यों मन भागे है
सरगम के तरानों से.......
(inspired by my photography
-pic musings)
just loved it...simply...
ReplyDeleteGood one which requires more elaboration..
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